guru govind singh jayanti : सिखों के दसवें एवं अंतिम गुरु, गुरु श्री गोबिंद सिंह जी की जयंती हर वर्ष नानकशाही कैलेंडर के आधार पौष माह के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को मनाई जाती है। यह तिथि कभी जनवरी में तो कभी दिसंबर में पड़ती है। इस वर्ष गुरु गोबिंद सिंह की जयंती 09 जनवरी 2022 दिन रविवार को है।
गुरु गोबिंद सिंह के जन्म दिवस को प्रकाश पर्व या गुरु गोबिंद सिंह जयंती के रुप में मनाया जाता है। उनके पिता गुरु तेग बहादुर और माता गुजरी थीं। पिता तेग बहादुर सिखों के 9वें गुरु थे। गुरु गोबिंद सिंह जी को बचपन में प्यार से गोबिंद राय के नाम से बुलाया जाता था। वे बहुत निडर और साहसी व्यक्ति थे।
आइए जानते हैं गुरु गोबिंद सिंह जी से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण बातें।
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गुरु गोबिंद सिंह जी का जन्म और बचपन
श्री गुरु गोबिंद सिंह का जन्म 22 दिसम्बर 1666 की पौष शुक्ल सप्तमी तिथि को पटना में हुआ था। जिस जगह उनका जन्म हुआ, उसे अब पटना साहिब नाम से जाना जाता है।
अँग्रेज़ी कैलेंडर के दिन, पचांग तिथि तथा नानकशाही जंतरी (कैलेंडर) के दिन को लेकर कुछ मतभेद जरूर है, परंतु पौष शुक्ल सप्तमी तिथि को यह प्रकाश पर्व सबसे अधिक मान्यता के साथ मनाया जाता है। इस वर्ष पौष शुक्ल सप्तमी तिथि का प्रारंभ 08 जनवरी दिन शनिवार को रात 10 बजकर 42 मिनट से हो रहा है और इसका समापन 09 जनवरी को दिन में 11 बजकर 08 मिनट पर होगा।
बचपन में उनका नाम गोविंद राय था। उनके पिता गुरु तेग बहादुर थे। उन दिनों मुगलों का शासन था। औरंगजेब गद्दी पर था। औरंगजेब के शासन में इस्लाम को राजधर्म घोषित किया गया। वह जबरन हिंदुओं को धर्म परिवर्तन करवा रहा था। औरंगजेब से प्रताड़ित लोग गुरु तेग बहादुर के पास फरियाद लेकर पहुंचे, लेकिन औरंगजेब ने दिल्ली के चांदनी चौक पर गुरु तेज बहादुर का सरेआम सिर कटवा दिया।
सिखों के आखिरी गुरु
पिता गुरु तेज बहादुर जोकि सिखों के 9वें गुरु थे, के निधन के समय गोबिंद मात्र 9 साल के थे। उन्हें तुरंत गुरु बना दिया गया। 11 नवंबर 1675 को गुरु गोबिंद सिंह जी ने 10वें गुरु पद की जिम्मेदारी ली। उसके बाद से उन्होंने अपना पूरा जीवन लोगों की सेवा में गुजार दिया।
गुरु गोबिंद सिंह ने गुरु ग्रंथ साहिब को सिखों का गुरु घोषित करते हुए गुरु परंपरा को खत्म किया था। इसके लिए साल 1699 में उन्होंने खालसा पंथ की स्थापना की थी। जिसके बाद सिख समुदाय गुरु ग्रंथ साहिब की पूजा करने लगे। उन्होंने सिख समुदाय के लिए सबसे बड़ा फैसला लिया। सिखों के लिए ये घटना सबसे महत्वपूर्ण मानी जाती है।
गुरुप्रथा का अंत और खालसा पंथ का उदय
गुरु गोबिंद जी ने खालसा पंथ की स्थापना आनंदपुर साहिब में 1699 को बैसाखी के दिन की थी। उन्होंने खालसा वाणी भी दी, जिसमें ‘वाहेगुरु जी का खालसा, वाहेगुरु जी की फतेह’ कहा गया। इसके अलावा उन्होंने पांच प्यारों को अमृत पान करवाकर खालसा बनाया और खुद भी उनके हाथों से अमृत पान किया।
पंच ककार सिद्धांत
गुरु गोबिंद सिंह जी ने खालसा पंथ में जीवन के पांच सिद्धांत दिए हैं, जिन्हें पंच ककार के नाम से जाना जाता है। इसका मतलब ‘क’ शब्द से शुरु होने वाले पांच सिद्धांत हैं, जिनका अनुसरण करना हर खालसा सिख के लिए अनिवार्य है। ये पांच ककार हैं- केश, कड़ा, कृपाण, कंघा और कच्छा।
योद्धा होने के साथ ही कई भाषाओं के जानकार
सिख समुदाय के 10वें गुरू गोबिंद सिंह जी एक महान योद्धा होने के साथ ही कई भाषाओं के जानकार, अच्छे लेखन, कवि, भक्त और आध्यात्मिक व्यक्तित्व वाले महापुरुष थे। उन्हें संस्कृत, फारसी, पंजाबी और अरबी भाषाएं भी आती थीं। गुरु गोबिंद जी ने कई ग्रंथों की रचना की।
गुरु गोबिंद सिंह जी की धोखे से हत्या
सच्चाई, धर्म और सिखों की रक्षा करने वाले इस संत, योद्धा ने अपने निजी जीवन में काफी कुछ खोया। 9 साल की उम्र में पिता की हत्या कर दी गई थी जब उन्होंने इस्लामिक धर्म में परिवर्तित होने से मना कर दिया था और अपनी इस धार्मिक आस्था के लिए उन्हें एक शहीद के रूप में जाना जाता है। पिता के हत्या के बाद, पूरे परिवार का एक एक कर बलिदान होते गया।
गोबिंद सिंह ने स्वयं खुद के योद्धाओं की सेना की स्थापना करी जिनका नामकरण किया गया था और जिन्हें “संतगण” का अनुशासित और धार्मिक जीवन जीने के प्रति समर्पित किया गया था। उन्होंने और उनकी “खालसा” सेना ने सिखों को धार्मिक और राजनीतिक आज़ादी पाने के लिए, मुग़ल शासकों के खिलाफ़ खड़े होकर उनसे लड़ने की प्रेरणा दी। गुरु गोबिंद सिंह की लोकप्रियता और उनकी नेकी से डरने वाले भी कम नहीं थें। औरंगजेब की मौत के बाद नवाब वजीत खां ने धोखे से गुरु गोबिंद सिंह जी की हत्या करवा दी।
धूमधाम से मनाई जाती है गुरु गोबिंद सिंह जयंती
सिखों के 10 वें गुरू गुरू गोबिंद सिंह जी का जन्मदिन देशभर में सिख समुदायों द्वारा खूब धूम-धाम से मनाया जाता है। इस दिन को प्रकाश पर्व के नाम से भी जाना जाता है।
गुरु गोबिंद सिंह जयंती के अवसर पर, भारत में रहने वाले सिख लोग और वो सब जो की गोबिंद सिंह जी को मानते हैं और उन्हें याद करते हैं, खुद की और दूसरों की उन्नति की प्रार्थना करते हैं, गोबिंद सिंह जी द्वारा लिखी गई कविताओं को सुनते हैं, उनकी उपलब्धियों के लिए उनकी सराहना करते हैं, ख़ास भोजन बनाते हैं और उसे सब में बांटते हैं और भारतीय शहरों में बीच बाज़ार परेड और जुलूस निकालते हैं।
इस दिन देशभर में गुरुद्वारों को सजाया जाता है। इस दिन सिख लोग अरदास, भजन, कीर्तन करते हैं। साथ ही, गुरुद्वारे में मत्था टेकने जाते हैं। साथ ही गुरु गोबिंद सिंह जी के बताए धर्म के मार्ग पर चलने का प्रण लेते हैं।
गुरुद्वाराों में लंगर आदि का आयोजन किया जाता है। गरीबों और जरूरतमंदों को जरूरत का समाना दान किया जाता है। लोग इस दिन गुरु नानक गुरु वाणी भी पढ़ते हैं। ताकि लोगों का सही मार्गदर्शन किया जा सके। आइए जानते हैं प्रकाश पर्व से जुड़ी कुछ खास बातें।
गुरु गोबिंद सिंह जी से जुड़ी महत्वपूर्ण बातें
- श्री गुरु गोविन्द सिंह का जन्म नौवें सिख गुरु श्री गुरु तेग बहादुर जी और माता गुजरी के घर हुआ था।
- अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार गुरु गोबिंद सिंह का जन्म 22 दिसंबर 1666 को हुआ था। उनके जन्मदिन पर ही गुरु गोबिंद सिंह जयंती मनाई जाती है।
- गुरु गोबिंद सिंह का निधन 07 अक्टूबर 1708 को हुआ था। वे मुगलों के साथ युद्ध में शहीद हो गए थे। उनकी शहादत वाले स्थान पर तख्त श्री हजूर साहिब बना है, जो इस समय महाराष्ट्र के नांदेड़ में है।
- गुरु गोबिंद सिंह की तीन पत्नियां थीं। उनका पहला विवाह 10 साल की उम्र में बसंतगढ़ में माता जीतो से 21 जून 1677 को हुआ था। उनके तीन पुत्र जुझार सिंह, जोरावर सिंह और फतेह सिंह थे।
- इसके बाद 17 साल की उम्र में गुरु गोबिंद सिंह का दूसरा विवाह माता सुंदरी से 04 अप्रैल 1684 को आनंदपुर में हुआ था। इनसे इनके एक पुत्र अजीत सिंह थे।
- आनंदपुर में ही 33 साल की उम्र में गुरु गोबिंद सिंह ने तीसरा विवाह 15 अप्रैल 1700 को किया। उनका विवाह माता साहिब देवन से हुआ था। उनकी कोई संतान नहीं थी। सिख धर्म में उनका प्रभावी योगदान रहा है।
- गुरु गोबिंद सिंह ने ही खालसा वाणी “वाहेगुरु जी का खालसा, वाहेगुरु जी की फतह” दिया था। गुरु गोबिंद सिंह जी ने सिखों में अपने बाद गुरु परंपरा को खत्म कर दिया और गुरु ग्रंथ साहिब को स्थाई गुरु घोषित कर दिया।
- गुरु गोबिंद सिंह जी ने धर्म की रक्षा के लिए अपने पूरे परिवार को बलिदान कर दिया। उनके चार बेटे बाबा जोरावर सिंह, फतेह सिंह, अजीत सिंह और बाबा जुझार सिंह धर्म रक्षा के लिए बलिदान हो गए।
- गुरु गोबिंद सिंह जी की जयंती के अवसर पर नगर प्रभात फेरी का आयोजन होता है, जिसमें सिख समुदाय के लोग बढ़-चढ़कर शामिल होते हैं।
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