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2022 रविदास जयंती?जानें कैसे गुजरा उनका जीवन| Guru Ravidas Jayanti 2022

भारत की जमीन पर ऐसे कई महान गुरुओं ने जन्म लिया है जिनका योगदान आज भी लोग भूले नहीं है। इन्हीं में से एक गुरु रविदास थे जिन्होंने भक्ति मूवमेंट को अपनी भागीदारी से हर जगह प्रख्यात कर दिया था। इतिहासकारों के मुताबिक, रविदास जी का जन्म वर्ष 1398 में तथा हिन्दू पंचांग के अनुसार, माघ महीने की पूर्णिमा के दिन हुआ था। (हालांकि उनके जन्म को लेकर कई विद्वानों का मत है कि 1482 से 1527 ईस्वी के बीच उनका जन्म हुआ था।) कहा जाता है कि जिस दिन उनका जन्म हुआ, उस दिन रविवार था, इसलिए उनका नाम रविदास पड़ गया।
2022 में रविदास जयंती 16 फरवरी दिन बुधवार को मनाई जाएगी। संत रविदास का जन्म उत्तर प्रदेश में वाराणसी के सीरगोबर्धनपुर गांव में हुआ था और उनकी माता का नाम कलसा देवी और पिता का नाम श्रीसंतोख दास जी था। इस बार गुरु रविदास की 645वीं वर्षगांठ मनाई जाएगी।
मध्यकालीन भारतीय संत परंपरा में संत रविदास जी का विशिष्ट स्थान है। संत रविदास जी को संत रैदास और भगत रविदास जी के नाम से भी संबोधित किया जाता है। संत शिरोमणि रविदास का जीवन ऐसे अद्भुत प्रसंगों से भरा है, जो दया, प्रेम, क्षमा, धैर्य, सौहार्द, समानता, सत्यशीलता और विश्व-बंधुत्व जैसे गुणों की प्रेरणा देते हैं। गुरु रविदास के वचनों में इतनी ताकत थी कि लोग उनसे दूर-दूर से मिलने आते थे। कहा जाता है कि अपने भक्तिमय गानों और दोहों की वजह से उन्होंने भक्ति मूवमेंट के उपदेशों को लोगों तक पहुंचाया था। इस बारे में उनकी एक कहावत – “जो मन चंगा तो कठौती में गंगा” काफी प्रचलित है।
आइए जानते हैं इनके जन्म और जीवन से जुड़ी कुछ अहम बातें।

गुरु रविदास के जीवन से जुड़ी महत्वपूर्ण बातें

ऐसे गुजरा संत रविदास जी का जीवन

संत रविदास जी के पिता जूते बनाने का काम करते थे। रविदाज जी भी अपने पिता की जूते बनाने में मदद करते थे। इस कारण उन्हें जूते बनाने का काम पैतृक व्यवसाय के तौर पर मिला। उन्‍होंने इसे खुशी से अपनाया और पूरी लगन के साथ वह जूते बनाया करते थे। साधु-संतों के प्रति शुरुआत से ही संत रविदास जी का झुकाव रहा है। जब भी उनके दरबार पर कोई साधु- संत या फकीर बिना जूते चप्पल के आता था, तो वह उन्हें बिना पैसे लिए जूते चप्पल दे दिया करते थे।

संत रविदास जात-पात के विरोधी थे

“जाति-जाति में जाति हैं, जो केतन के पात,
रैदास मनुष ना जुड़ सके जब तक जाति न जात।”

समाज में फैले भेद-भाव, छुआछूत का वह जमकर विरोध करते थे। जीवनभर उन्होंने लोगों को अमीर-गरीब हर व्यक्ति के प्रति एक समान भावना रखने की सीख दी। उनका मानना था कि हर व्यक्ति को भगवान ने बनाया है, इसलिए सभी को एक समान ही समझा जाना चाहिए। वह लोगों को एक दूसरे से प्रेम और इज्जत करने की सीख दिया करते थे। संत रविदास की एक खासियत ये थी कि वे बहुत दयालु थे। दूसरों की मदद करना उन्‍हें भाता था। कहीं साधु-संत मिल जाएं तो वे उनकी सेवा करने से पीछे नहीं हटते थे।

गुरु रविदास वर्ण व्यवस्था को नकारते थे

जिस तरह विशाल हाथी शक्कर के कणों को नहीं चुन पाता, मगर छोटी-सी चींटी उन कणों को सहजता से चुन लेती है, उसी तरह अभिमान त्यागकर विनम्र आचरण करने वाला मनुष्य सहज ही ईशकृपा पा लेता है। जन्म और जाति आधारित वर्ण व्यवस्था को नकारते हुए रैदास कहते हैं- ‘रविदास ब्राह्मण मत पूजिए, जेऊ होवे गुणहीन। पूजहिं चरण चंडाल के जेऊ होवें गुण परवीन।।

ऐसा था संत रैदास जी का दर्शन

संत रैदास के इसी दर्शन को समझकर महात्मा गांधी ने अपने ‘रामराज्य’ के लिए पारंपरिक हथकरधा तथा कुटीर उद्योगों को महत्व दिया था और इसी आधार पर चलते हुए नई व्यवस्थाएं कायम हुईं। गरीबी, बेकारी और बदहाली से मुक्ति के लिए उनका श्रम और स्वावलंबन का दर्शन आज भी कारगर है।

जब गंगा मैया ने स्वयं किया गुरु रविदास जी की भेंट को स्वीकार

कहा जाता है कि एक बार पंडित जी गंगा स्नान के लिए उनके पास जूते खरीदने आए। बातों-बातों में गंगा पूजन की बात निकल चली। उन्होंने पंडित महोदय को बिना दाम लिए ही जूते दे दिए और निवेदन किया कि उनकी एक सुपारी गंगा मैया को भेंट कर दें। संत की निष्ठा इतनी गहरी थी कि पंडित जी ने सुपारी गंगा को भेंट की तो गंगा ने खुद उसे ग्रहण किया। संत रविदास के जीवन का एक प्रेरक प्रसंग यह भी है कि एक साधु ने उनकी सेवा से प्रसन्न होकर, चलते समय उन्हें पारस पत्थर दिया और बोले कि इसका प्रयोग कर अपनी दरिद्रता मिटा लेना। कुछ महीनों बाद वह वापस आए, तो संत रविदास को उसी अवस्था में पाकर हैरान हुए। साधु ने पारस पत्थर के बारे में पूछा, तो संत ने कहा कि वह उसी जगह रखा है, जहां आप रखकर गए थे।

मीरा के गुरु

कहते हैं कि भगवान कृष्ण की परमभक्त मीराबाई के गुरु संत रविदास थे। मीराबाई संत रविदास से ही प्रेरणा ली थी और भक्तिमार्ग अपनाया था। कहते हैं संत रविदास ने कई बार मीराबाई की जान बचाई थी।

कैसे मनाई जाती है रविदास जयंती

देशभर में माघ पूर्णिमा के अवसर पर संत रविदास जी का जन्म दिवस बहुत ही उत्साह के साथ मनाया जाता है। इस दिन लोग कीर्तन जुलूस निकालते हैं। इस दौरान गीत- संगीत, गाने, दोहे सड़कों पर बने मंदिरों में गाए जाते हैं। संत रविदास जी के भक्त उनके जन्म दिवस के दिन घर या मंदिर में बनी उनकी छवि की पूजा करते हैं। संत रविदास जी का जन्म वाराणसी के पास सीरगोबर्धनपुर गांव में हुआ था। यही कारण है कि वाराणासी में संत रविदास जी का जन्म दिवस बेहद भव्य तरीके से मनाया जाता है। इसमें उनके भक्त सक्रिय रुप से भाग लेने के लिए वाराणसी आते हैं।
सिख धर्म के अनुयायी भी बड़ी श्रद्धा भावना से, गुरु रविदास जयंती पर गुरुद्वारों में आयोजित करते हैं। इस अवसर पर पूर्णिमा से दो दिन पूर्व, गुरु ग्रंथ साहिब का अखंड पाठ रखा जाता है, और उस पाठ की समाप्ति पूर्णिमा के दिन होती है। इसके पश्चात कीर्तन दरबार होता है, जिसमें रागी जत्था गुरु रविदास जी की वाणियों का गायन करते हैं।

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