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15 अगस्त 2022 पर भाषण | independence day speech in hindi

भारतीय स्वतंत्रता दिवस पर छोटे तथा बड़े भाषण (Short and Long speech on Independence Day in Hindi)

भाषण 1 (300 शब्द)

15 अगस्त 2022 यानी आज जब हम आजादी के इस पवित्र दिवस को मना रहे हैं, तब देश की आजादी के लिए जिन्‍होंने अपना जीवन दे दिया, जिन्‍होंने अपनी जवानी दे दी, जिन्‍होंने जवानी जेलों में काट दी, जिन्‍होंने फांसी के फंदे को चूम लिया, जिन्‍होंने सत्‍याग्रह के माध्‍यम से आजादी के बिगुल में अहिंसा के स्‍वर भर दिए। मैं आज देश के आजादी के उन सभी बलिदानियों को, त्‍यागी-तपस्वियों को आदरपूर्वक नमन करता हूं।
मैं आज आजाद भारत के विकास के लिए, शांति के लिए, समृद्धि के लिए जनसामान्‍य की आशाओं-आकांक्षाओं को पूर्ण करने के लिए जिन-जिन लोगों ने योगदान किया है, आज मैं उनको भी दिल से नमन करता हूं।

मैं स्‍पष्‍ट मानता हूं, व्‍यवस्‍थाओं में बदलाव होना चाहिए, लेकिन साथ-साथ सामाजिक जीवन में भी बदलाव होना चाहिए। उसके साथ-साथ व्‍यवस्‍थाओं को चलाने वाले लोगों के दिल-दिमाग में भी बदलाव बहुत अनिवार्य होता है। तभी जाकर हम इच्छित परिणामों को प्राप्‍त कर सकते हैं।
आजादी के 75 साल बाद बाबा साहेब अम्‍बेडकर के सपने और गुरू नानक देव जी की शिक्षा को ले करके हम आगे बढ़ें और एक उत्‍तम समाज का निर्माण करें।

मेरे प्‍यारे भाइयो-बहनो हम जानते हैं कि हमारे लक्ष्‍य हिमालय जितने ही ऊंचे हैं, हमारे सपने अनगिनत असंख्‍य तारों से भी ज्‍यादा हैं लेकिन हम ये भी जानते हैं कि हमारे हौसलों के उड़ान के आगे आसमान भी कुछ नहीं है।

आइए हम सब मिल कर संकल्‍प लें कि हमारा सामर्थ्‍य हिन्‍द महासागर जितना अथाह हो, हमारी कोशिशें गंगा की धारा जितनी पव‍ित्र हो और सबसे बड़ी बात हमारे मूल्‍यों के पीछे हजारों साल की पुरानी संस्‍कृति, ऋषियों की मुनियों की तपस्‍या, देशवासियों का त्‍याग, कठोर परिश्रम , यह सब हमारी प्रेरणा बनें।

आइये, हम इन्‍हीं विचारों के साथ, इन्‍हीं आदर्शों के साथ, इन्‍हीं संकल्‍पों के साथ सिद्धि प्राप्‍त करने के लक्ष्‍य को ले करके हम चल पड़ें एक उत्‍तम समाज निर्माण बनाने के लिए।
आइये, हम मिल करके अपने देश, अपने गांव, अपने समाज को आगे बढ़ाएं। इसी एक अपेक्षा के साथ, मैं फिर एक बार देश के लिए जीने वाले, देश के लिए जूझने वाले, देश के लिए मरने वाले, देश के लिए कुछ कर-गुजरने वाले हर किसी को सादर पूर्वक नमन करता हूं।

भाषण 2 (1000 शब्द)

मेरे प्यारे ग्रामवासियों/नगरवासियों

15 अगस्त का दिन भारत-माता की सभी संतानों के लिए बेहद खुशी का दिन है, चाहे वे देश में हों या विदेश में। आज के दिन हम सभी को देशप्रेम की भावना का और भी गहरा अनुभव होता है। इस अवसर पर, हम अपने उन असंख्‍य स्वतन्त्रता सेनानियों और क्रांतिकारियों को कृतज्ञता के साथ याद करते हैं, जिन्होंने हमें आज़ादी दिलाने के लिए संघर्ष, त्‍याग और बलिदान के महान आदर्श प्रस्‍तुत किए।

स्वतंत्र देश के रूप में 75 वर्षों की हमारी यह यात्रा, आज एक खास मुकाम पर आ पहुंची है। कुछ ही सप्ताह बाद, 2 अक्टूबर को, हम राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की 153वीं जयंती मनाएंगे। गांधीजी, हमारे स्वतंत्रता संग्राम के महानायक थे। वे समाज को हर प्रकार के अन्याय से मुक्त कराने के प्रयासों में हमारे मार्गदर्शक भी थे। गांधीजी का मार्गदर्शन आज भी उतना ही प्रासंगिक है।
उन्होंने हमारी आज की गंभीर चुनौतियों का अनुमान पहले ही कर लिया था। गांधीजी मानते थे कि हमें प्रकृति के संसाधनों का उपयोग विवेक के साथ करना चाहिए ताकि विकास और प्रकृति का संतुलन हमेशा बना रहे। उन्होंने पर्यावरण के प्रति संवेदनशीलता पर ज़ोर दिया और प्रकृति के साथ सामंजस्‍य बिठाकर जीवन जीने की शिक्षा भी दी।

जिस महान पीढ़ी के लोगों ने हमें आज़ादी दिलाई, उनके लिए स्वाधीनता, केवल राजनीतिक सत्ता को हासिल करने तक सीमित नहीं थी। उनका उद्देश्य प्रत्येक व्यक्ति के जीवन और समाज की व्यवस्था को बेहतर बनाना भी था।

इसी वर्ष गर्मियों में, आप सभी ने आम चुनाव में भाग लेकर विश्व की सबसे बड़ी लोकतांत्रिक प्रक्रिया को सम्पन्न किया है। इस उपलब्‍धि के लिए, सभी मतदाता बधाई के पात्र हैं। वे बड़ी संख्या में, बहुत उत्साह के साथ, मतदान केन्द्रों तक पहुंचे। उन्होंने न केवल अपने मताधिकार का प्रयोग किया बल्‍कि निर्वाचन से जुड़ी अपनी ज़िम्मेदारी भी निभाई।
हर आम चुनाव में, हमारी विकास यात्रा के एक नए अध्याय का शुभारंभ होता है। इन चुनावों के माध्यम से, हमारे ग्रामवासी तथा नगरवासी, अपनी आशा और विश्वास को नई अभिव्यक्ति देते हैं। इस राष्ट्रीय अभिव्यक्ति की शुरुआत आज़ादी के उस जज़्बे के साथ हुई थी जिसका अनुभव 15 अगस्त, 1947 के दिन सभी देशवासियों ने किया था। अब यह हम सभी की जिम्‍मेदारी है कि अपने गौरवशाली देश को नई ऊंचाइयों पर ले जाने के लिए उसी जोश के साथ, कंधे से कंधा मिलाकर काम करें।

मतदाताओं और जन-प्रतिनिधियों के बीच, नागरिकों और सरकारों के बीच, तथा सिविल सोसायटी और प्रशासन के बीच आदर्श साझेदारी से ही राष्ट्र-निर्माण का हमारा अभियान और मजबूत होगा।

मैंने महसूस किया है कि हमारे ग्रामवासी/नगरवासी के लोगों की रुचियां और आदतें भले ही अलग-अलग हों, लेकिन उनके सपने एक जैसे हैं। 1947 से पहले, सभी भारतीयों का लक्ष्य था कि देश को आज़ादी प्राप्‍त हो। आज हमारा लक्ष्य है कि विकास की गति तेज हो, शासन व्यवस्था कुशल और पारदर्शी हो ताकि लोगों का जीवन बेहतर हो।

भारत के लंबे इतिहास में, हमारे देशवासियों को कई बार, चुनौतियों और कठिनाइयों से गुजरना पड़ा है। ऐसे कठिन समय में भी, हमारा समाज विपरीत परिस्‍थितियों का सामना करते हुए आगे बढ़ता रहा। अब परिस्थितियां बदल गई हैं। सरकार, लोगों की आशाओं-आकांक्षाओं को पूरा करने में उनकी सहायता के लिए बेहतर बुनियादी सुविधाएं और सामर्थ्य उन्हें उपलब्ध करा रही है। ऐसे अनुकूल वातावरण में, हमारे देशवासी जो उपलब्धियां हासिल कर सकते हैं, वे हमारी कल्पना से भी परे हैं।

जब हम अपने देश की समावेशी संस्कृति की बात करते हैं तब हम सबको यह भी देखना है कि हमारा आपसी व्यवहार कैसा हो। सभी व्यक्तियों के साथ हमें वैसा ही सम्मान-जनक व्यवहार करना चाहिए जैसा हम उनसे अपने लिए चाहते हैं। भारत का समाज तो हमेशा से सहज और सरल रहा है, तथा ‘जियो और जीने दो’ के सिद्धांत पर चलता रहा है। हम भाषा, पंथ और क्षेत्र की सीमाओं से ऊपर उठकर एक दूसरे का सम्मान करते रहे हैं।

हजारों वर्षों के इतिहास में, भारतीय समाज ने शायद ही कभी दुर्भावना या पूर्वाग्रह से ग्रस्त होकर काम किया हो। मेल-जोल के साथ रहना, भाई-चारा निभाना, निरंतर सुधार करते रहना और समन्वय पर ज़ोर देना, हमारे इतिहास और विरासत का बुनियादी हिस्सा रहा है। हमारी नियति तथा भविष्य को सँवारने में भी इनकी प्रमुख भूमिका रहेगी। हमने दूसरों के अच्छे विचारों को खुशी-खुशी अपनाया है, और सदैव उदारता का परिचय दिया है।
भारत युवाओं का देश है। हमारे समाज का स्‍वरूप तय करने में युवाओं की भागीदारी निरंतर बढ़ रही है। हमारे युवाओं की ऊर्जा खेल से लेकर विज्ञान तक और ज्ञान की खोज से लेकर सॉफ्ट स्किल तक कई क्षेत्रों में अपनी प्रतिभा बिखेर रही है। यह बहुत ही प्रसन्नता की बात है कि युवा-ऊर्जा की धारा को सही दिशा देने के लिए, देश के विद्यालयों में जिज्ञासा की संस्‍कृति को बढ़ावा दिया जा रहा है। यह, हमारे बेटे-बेटियों और आने वाली पीढ़ियों के लिए हमारा अमूल्य उपहार होगा। उनकी आशाओं और आकांक्षाओं पर विशेष ध्यान देना है, क्‍योंकि उनके सपनों में हम भविष्य के भारत की झलक देख पाते हैं।

मेरे प्यारे ग्रामवासियों/नगरवासियों

मुझे विश्वास है कि समाज के अंतिम व्यक्ति के लिए भी हमारे ग्रामवासी/ नगरवासी अपनी संवेदनशीलता बनाए रखेंगे, अपने आदर्शों पर अटल रहेंगे, अपने जीवन मूल्यों को सँजोकर रखेंगे और साहस की परंपरा को आगे बढ़ाएंगे। हमारे युवा पीढ़ी के लोग, अपने ज्ञान और विज्ञान के बल पर चाँद और मंगल तक पहुँचने की योग्यता रखते हैं। साथ ही, हमारी संस्कृति की यह विशेषता है कि हम सब प्रकृति के लिए और सभी जीवों के लिए प्रेम और करुणा का भाव रखते हैं। उदाहरण के लिए, पूरी दुनिया के जंगली बाघों की तीन-चौथाई आबादी को हमने सुरक्षित बसेरा दिया है।

हमारे स्वतन्त्रता आंदोलन को स्वर देने वाले महान कवि सुब्रह्मण्य भारती ने सौ वर्ष से भी पहले भावी भारत की जो कल्पना की थी वह आज के हमारे प्रयासों में साकार होती दिखाई देती है। उन्होंने कहा था:

मंदरम् कर्पोम्, विनय तंदरम् कर्पोम्,
वानय अलप्पोम्, कडल मीनय अलप्पोम्।
चंदिरअ मण्डलत्तु, इयल कण्डु तेलिवोम्,
संदि, तेरुपेरुक्कुम् सात्तिरम् कर्पोम्॥

अर्थात

हम शास्त्र और कार्य कुशलता दोनों सीखेंगे,
हम आकाश और महासागर की सीमाएं नापेंगे।
हम चंद्रमा की प्रकृति को गहराई से जानेंगे,
हम सर्वत्र स्वच्छता रखने की कला सीखेंगे॥

मेरे प्यारे ग्रामवासियों/नगरवासियों

मेरी कामना है कि हमारी समावेशी संस्कृति, हमारे आदर्श, हमारी करुणा, हमारी जिज्ञासा और हमारा भाई-चारा सदैव बना रहे। और हम सभी, इन जीवन-मूल्‍यों की छाया में आगे बढ़ते रहें।

इन्‍हीं शब्‍दों के साथ, मैं आप सभी को स्वतन्त्रता दिवस की शुभकामनाएं देता हूं।

धन्यवाद
जय हिन्द!

भाषण 3 (2000 शब्द)

आज हमारी आज़ादी के चहुत्तर वर्ष पूरे हो चुके। आज हम अपनी स्वाधीनता की वर्षगांठ मनाएंगे। राष्ट्र-गौरव के इस अवसर पर, मैं यहां उपस्थित आप सभी लोगों को बधाई देता हूं। 15 अगस्त का दिन, प्रत्येक भारतीय के लिए पवित्र होता है, चाहे वह देश में हो, या विदेश में। इस दिन, हम सब अपना ‘राष्ट्र-ध्वज’ अपने-अपने घरों, विद्यालयों, कार्यालयों, नगर और ग्राम पंचायतों, सरकारी और निजी भवनों पर उत्साह से फहराते हैं।

हमारा ‘तिरंगा’ हमारे देश की अस्मिता का प्रतीक है। इस दिन, हम देश की संप्रभुता का उत्सव मनाते हैं, और अपने उन पूर्वजों के योगदान को कृतज्ञता से याद करते हैं, जिनके प्रयासों से हमने बहुत कुछ हासिल किया है। यह दिन, राष्ट्र-निर्माण में, उन बाकी बचे कार्यों को पूरा करने के संकल्प का भी दिन है, जिन्हें हमारे प्रतिभाशाली युवा अवश्य ही पूरा करेंगे।

सन 1947 में, 14 और 15 अगस्त की मध्य-रात्रि के समय, हमारा देश आज़ाद हुआ था। यह आज़ादी हमारे पूर्वजों और सम्मानित स्वाधीनता सेनानियों के वर्षों के त्याग और वीरता का परिणाम थी। स्वाधीनता संग्राम में संघर्ष करने वाले सभी वीर और वीरांगनाएं, असाधारण रूप से साहसी, और दूर-द्रष्टा थे। इस संग्राम में, देश के सभी क्षेत्रों, समाज के सभी वर्गों और समुदायों के लोग शामिल थे।
वे चाहते, तो सुविधापूर्ण जीवन जी सकते थे। लेकिन देश के प्रति अपनी अटूट निष्ठा के कारण, उन्होंने ऐसा नहीं किया। वे एक ऐसा स्वाधीन और प्रभुता-सम्पन्न भारत बनाना चाहते थे, जहां समाज में बराबरी और भाई-चारा हो। हम उनके योगदान को हमेशा याद करते हैं।

हम भाग्यशाली हैं कि हमें ऐसे महान देशभक्तों की विरासत मिली है। उन्होंने हमें एक आज़ाद भारत सौंपा है। साथ ही, उन्होंने कुछ ऐसे काम भी सौंपे हैं, जिन्हें हम सब मिलकर पूरा करेंगे। देश का विकास करने, तथा ग़रीबी और असमानता से मुक्ति प्राप्त करने के, ये महत्वपूर्ण काम हम सबको करने हैं। इन कार्यों को पूरा करने की दिशा में, हमारे राष्ट्रीय जीवन का हर प्रयास, उन स्वाधीनता सेनानियों के प्रति हमारी श्रद्धांजलि है।

यदि हम स्वाधीनता का केवल राजनैतिक अर्थ लेते हैं तो लगेगा कि 15 अगस्त, 1947 के दिन हमारा लक्ष्य पूरा हो चुका था। उस दिन राजसत्ता के खिलाफ संघर्ष में हमें सफलता प्राप्त हुई और हम स्वाधीन हो गए। लेकिन, स्वाधीनता की हमारी अवधारणा बहुत व्यापक है। इसकी कोई बंधी-बंधाई और सीमित परिभाषा नहीं है। स्वाधीनता के दायरे को बढ़ाते रहना, एक निरन्तर प्रयास है।

1947 में राजनैतिक आज़ादी मिलने के, इतने दशक बाद भी, प्रत्येक भारतीय, एक स्वाधीनता सेनानी की तरह ही देश के प्रति अपना योगदान दे सकता है। हमें स्वाधीनता को नए आयाम देने हैं, और ऐसे प्रयास करते रहना है, जिनसे हमारे देश और देशवासियों को विकास के नए-नए अवसर प्राप्त हो सकें।

हमारे किसान, उन करोड़ों देशवासियों के लिए अन्न पैदा करते हैं, जिनसे वे कभी आमने-सामने मिले भी नहीं होते। वे, देश के लिए खाद्य सुरक्षा और पौष्टिक आहार उपलब्ध कराके, हमारी आज़ादी को शक्ति प्रदान करते हैं। जब हम उनके खेतों की पैदावार और उनकी आमदनी बढ़ाने के लिए आधुनिक टेक्नॉलॉजी और अन्य सुविधाएं उपलब्ध कराते हैं, तब हम अपने स्वाधीनता सेनानियों के सपनों का भारत बनाते हैं।

हमारे सैनिक, सरहदों पर, बर्फीले पहाड़ों पर, चिलचिलाती धूप में, सागर और आसमान में, पूरी बहादुरी और चौकसी के साथ, देश की सुरक्षा में समर्पित रहते हैं। वे बाहरी खतरों से सुरक्षा करके हमारी स्वाधीनता सुनिश्चित करते हैं। जब हम उनके लिए बेहतर हथियार उपलब्ध कराते हैं, स्वदेश में ही रक्षा उपकरणों के लिए सप्लाई-चेन विकसित करते हैं, और सैनिकों को कल्याणकारी सुविधाएं प्रदान करते हैं, तब हम अपने स्वाधीनता सेनानियों के सपनों का भारत बनाते हैं।

हमारी पुलिस और अर्धसैनिक बल अनेक प्रकार की चुनौतियों का सामना करते हैं। वे आतंकवाद का मुक़ाबला करते हैं, तथा अपराधों की रोकथाम और कानून-व्यवस्था की रक्षा करते हैं। साथ ही साथ, प्राकृतिक आपदाओं के समय, वे हम सबको सहारा देते हैं। जब हम उनके काम-काज और व्यक्तिगत जीवन में सुधार लाते हैं, तब हम अपने स्वाधीनता सेनानियों के सपनों का भारत बनाते हैं।

महिलाओं की, हमारे समाज में, एक विशेष भूमिका है। कई मायनों में, महिलाओं की आज़ादी को व्यापक बनाने में ही देश की आज़ादी की सार्थकता है। यह सार्थकता, घरों में माताओं, बहनों और बेटियों के रूप में, तथा घर से बाहर अपने निर्णयों के अनुसार जीवन जीने की उनकी स्वतन्त्रता में देखी जा सकती है। उन्हें अपने ढंग से जीने का, तथा अपनी क्षमताओं का पूरा उपयोग करने का सुरक्षित वातावरण तथा अवसर मिलना ही चाहिए।

वे अपनी क्षमता का उपयोग चाहे घर की प्रगति में करें, या फिर हमारे work force या उच्च शिक्षा-संस्थानों में महत्वपूर्ण योगदान देकर करें, उन्हें अपने विकल्प चुनने की पूरी आज़ादी होनी चाहिए। एक राष्ट्र और समाज के रूप में हमें यह सुनिश्चित करना है कि महिलाओं को, जीवन में आगे बढ़ने के सभी अधिकार और क्षमताएं सुलभ हों। तब हम अपने स्वाधीनता सेनानियों के सपनों का भारत बनाते हैं।

हमारे नौजवान, भारत की आशाओं और आकांक्षाओं की बुनियाद हैं। हमारे स्वाधीनता संग्राम में युवाओं और वरिष्ठ-जनों, सभी की सक्रिय भागीदारी थी। लेकिन, उस संग्राम में जोश भरने का काम विशेष रूप से युवा वर्ग ने किया था। स्वाधीनता की चाहत में, भले ही उन्होंने अलग-अलग रास्ते चुने हों, लेकिन वे सभी आज़ाद भारत, बेहतर भारत, तथा समरस भारत के अपने आदर्शों और संकल्पों पर अडिग रहे।

हम अपने युवाओं का कौशल-विकास करते हैं, उन्हें टेक्नॉलॉजी, इंजीनियरिंग और उद्यमिता के लिए, तथा कला और शिल्प के लिए प्रेरित करते हैं। उन्हें संगीत का सृजन करने से लेकर मोबाइल एप्स बनाने के लिए और खेल प्रतियोगिताओं में उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए प्रोत्साहित करते हैं। इस प्रकार, जब हम अपने युवाओं की असीम प्रतिभा को उभरने का अवसर प्रदान करते हैं, तब हम अपने स्वाधीनता सेनानियों के सपनों का भारत बनाते हैं।

मैंने राष्ट्र-निर्माण के कुछ ही उदाहरण दिए हैं। ऐसे अनेक उदाहरण दिए जा सकते हैं। वास्तव में, वह प्रत्येक भारतीय जो अपना काम निष्ठा व लगन से करता है, जो समाज को नैतिकतापूर्ण योगदान देता है – चाहे वह डॉक्टर हो, नर्स हो, शिक्षक हो, लोक सेवक हो, फैक्ट्री वर्कर हो, व्यापारी हो, बुजुर्ग माता-पिता की देखभाल करने वाली संतान हो ये सभी, अपने-अपने ढंग से स्वाधीनता के आदर्शों का पालन करते हैं।

ये सभी नागरिक, जो अपने कर्तव्यों और दायित्वों का निर्वाह करते हैं, और अपना वचन निभाते हैं, वे भी स्वाधीनता संग्राम के आदर्शों का पालन करते हैं। मैं कहना चाहूंगा कि हमारे जो देशवासी कतार में खड़े रहकर अपनी बारी का इंतजार करते हैं, और अपने से आगे खड़े लोगों के अधिकारों का सम्मान करते हैं, वे भी हमारे स्वाधीनता सेनानियों के सपनों का भारत बनाते हैं। यह एक बहुत छोटा सा प्रयास है। आइए, कोशिश करें, इसे हम सब अपने जीवन का हिस्सा बनाएं।

करीब तीन दशक बाद, हम सब आजादी की सौवीं वर्षगांठ मनाएंगे। पूरी दुनिया, तेजी से बदल रही है। हमें दुनिया के मुक़ाबले अधिक तेज रफ्तार से, बदलाव और विकास करना होगा। आज जो निर्णय हम ले रहे हैं, जो बुनियाद हम डाल रहे हैं, जो परियोजनाएं हम शुरू कर रहे हैं, जो सामाजिक और आर्थिक पहल हम कर रहे हैं उन्हीं से यह तय होगा, कि हमारा देश कहाँ तक पहुंचा है।

भारतीय परम्परा में, दरिद्र-नारायण की सेवा को सबसे अच्छा काम कहा गया है। भगवान बुद्ध ने भी कहा था कि ‘अभित्वरेत कल्याणे’ अर्थात कल्याणकारी काम, सदैव तत्परता से करना चाहिए। मुझे विश्वास है कि हम सभी भारतवासी, समाज और देश के कल्याण के लिए, तत्परता के साथ अपना योगदान देते रहेंगे।

मेरे प्यारे भाइयों और बहनों

हमें गांधीजी के विचारों की गहराई को समझने का प्रयास करना होगा। उन्हें राजनीति और स्वाधीनता की सीमित परिभाषाएं, मंजूर नहीं थीं। जब गांधीजी और उनकी पत्नी कस्तूरबा, चंपारन में नील की खेती करने वाले किसानों के आंदोलन के सिलसिले में बिहार गए तो वहाँ उन्होंने काफी समय, वहाँ के लोगों, विशेष रूप से महिलाओं और बच्चों को, स्वच्छता और स्वास्थ्य की शिक्षा देने में लगाया। चंपारन में, और अन्य बहुत से स्थानों पर, गांधी जी ने स्वयं, स्वच्छता अभियान का नेतृत्व किया। उन्होंने साफ-सफाई को, आत्म-अनुशासन और शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए आवश्यक माना।

उस समय, बहुत से लोगों ने यह सवाल उठाया था कि इन सब बातों का भला स्वाधीनता संग्राम के साथ क्या लेना-देना है? महात्मा गांधी के लिए, स्वाधीनता के अभियान में, उन बातों का बहुत महत्व था। उनके लिए वह केवल राजनैतिक सत्ता प्राप्त करने का संग्राम नहीं था, बल्कि ग़रीब से ग़रीब लोगों को सशक्त बनाने, अनपढ़ लोगों को शिक्षित करने, तथा हर व्यक्ति, परिवार, समूह और गांव के लिए सम्मान के साथ जीवन जीने के अधिकार का संघर्ष था।

गांधी जी ‘स्वदेशी’ पर बहुत ज़ोर दिया करते थे। उनके लिए यह भारतीय प्रतिभा और संवेदनशीलता को बढ़ावा देने का प्रभावी माध्यम था। वे दुनिया के अन्य हिस्सों में प्रचलित चिंतन-धाराओं के बारे में सजग थे। वे यह मानते थे कि, भारतीय सभ्यता के अनुसार, हमें पूर्वाग्रहों से मुक्त होकर, नए-नए विचारों के लिए, अपने मस्तिष्क की खिड़कियां खुली रखनी चाहिए। यह स्वदेशी की उनकी अपनी सोच थी। दुनिया के साथ हमारे सम्बन्धों को परिभाषित करने में – हमारी अर्थव्यवस्था, स्वास्थ्य, शिक्षा, सामाजिक आकांक्षाओं और नीतिगत विकल्पों के चयन में – स्वदेशी की यह सोच आज भी प्रासंगिक है।

गांधीजी का महानतम संदेश यही था कि हिंसा की अपेक्षा, अहिंसा की शक्ति कहीं अधिक है। प्रहार करने की अपेक्षा, संयम बरतना, कहीं अधिक सराहनीय है तथा हमारे समाज में हिंसा के लिए कोई स्थान नहीं है। गांधीजी ने अहिंसा का यह अमोघ अस्त्र हमें प्रदान किया है। उनकी अन्य शिक्षाओं की तरह, अहिंसा का यह मंत्र भी, भारत की प्राचीन परम्परा में मौजूद था, और आज 21वीं सदी में भी, हमारे जीवन में यह उतना ही उपयोगी और प्रासंगिक है।

मेरे प्यारे भाइयों और बहनों

अपने देश के युवाओं में आदर्शवाद और उत्साह देखकर मुझे बहुत संतोष का अनुभव होता है। उनमें अपने लिए, अपने परिवार के लिए, समाज के लिए और अपने देश के लिए कुछ-न-कुछ हासिल करने की भावना दिखाई देती है। नैतिक शिक्षा का इससे बेहतर उदाहरण नहीं हो सकता है।

शिक्षा का उद्देश्य केवल डिग्री या डिप्लोमा प्राप्त कर लेना ही नहीं है, बल्कि सभी के जीवन को बेहतर बनाने की भावना को जगाना भी है। ऐसी भावना से ही, संवेदनशीलता और बंधुता को बढ़ावा मिलता है। यही भारतीयता है। यही भारत है। यह भारत देश ‘हम सब भारत के लोगों’ का है, न कि केवल सरकार का।

एकजुट होकर, हम ‘भारत के लोग’ अपने देश के हर नागरिक की मदद कर सकते हैं। एकजुट होकर, हम अपने वनों और प्राकृतिक धरोहरों का संरक्षण कर सकते हैं, हम अपने ग्रामीण और शहरी पर्यावास को नया जीवन दे सकते हैं। हम सब ग़रीबी, अशिक्षा और असमानता को दूर कर सकते हैं। हम सब मिलकर, ये सभी काम कर सकते हैं, और हमें यह करना ही है।

इन्हीं शब्दों के साथ, मैं एक बार फिर आपको, और आपके परिवार के सदस्यों को, स्वाधीनता दिवस की हार्दिक बधाई, और आप सबके स्वर्णिम भविष्य के लिए ढेर सारी शुभकामनाएं देता हूं।

धन्यवाद
जय हिन्द!

भाषण की परिभाषा क्या होता है?

किसी विषय पर विशेषज्ञ की तरह लगातार बात करना,बोलना भाषण देना कहलाता है |

भाषण की शुरुआत कैसे करें ?

जब आपका नाम बोला जाए तो आप अपनी जगह से पूर्ण विश्वास के साथ उठे और एक सामान्य चाल से मंच तक जाएँ और आप मंच पर बैठे अतिथिगण, सभा में उपस्थित गणमान्य लोग और सम्बंधित संस्था को सम्बोधित करके शुरुआत कर सकते है |

15 अगस्त को स्कूल में भाषण कैसे दें ?

किसी को भी एक अच्छा भाषण देने के लिए सही विषय का चुनाव करना ज़रुरी है। हमें अपने भाषण के लिए एक ऐसा विषय चुनना चाहिए, जो हमारे व्यक्तित्व के साथ मेल खाना चाहिए। किसी भी स्पीच को अच्छा बनाने के लिए हमें अपने साथ साथ दर्शकों के हित का भी ख्याल रखना चाहिए।

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