- घातक प्लाटून या घातक कमांडो (Ghatak commando), स्पेशल ऑपरेशन को अंजाम देने वाली भारतीय सेना की एक इन्फेंट्री प्लाटून है।
- इस तरह की एक प्लाटून भारतीय सेना की हर इन्फेंट्री बटालियन में होती है। जो जरूरत पड़ने पर हर तरह के ऑपरेशन को अंजाम दे सकती है।
- भारतीय सेना के इस स्पेशल फोर्स को यह नाम पूर्व आर्मी चीफ जनरल बिपिन चंद्र जोशी ने दिया था।
- घातक कमांडो (ghatak commando) मुख्य रूप से एक ‘Shock Troop‘ यानी दुश्मन को चौंका देने वाली टुकड़ी की तरह काम करती है।
- इसके जवान बटालियन की सबसे अगली पंक्ति में तैनात रहते हैं। घातक प्लाटून में अमूमन 20 जवान होते हैं।
- इसमें एक कमांडिंग कैप्टन होता है। दो नॉन कमीशंड अफसर होते हैं। इसके अलावा मार्क्समैन, स्पॉटर जोड़े, लाइटमशीन गनर, मेडिक और रेडियो ऑपरेटर होते हैं। बाकी बचे सैनिक असॉल्ट ट्रूप के तौर पर काम करते हैं।
- सेना के सबसे तेजतर्रार सैनिकों को घातक प्लाटून में शामिल किया जाता है।
- घातक का रोल ट्रूप्स के साथ दुश्मन के ठिकानों पर बटालियन की मदद के बिना हमला करना है।
- इनका ऑपरेशनल रोल अमेरिका की स्काउट स्नाइपर प्लाटून, यूएस मरीन की एसटीए प्लाटून और ब्रिटिश आर्मी की पैट्रोल्स प्लाटून की तरह ही होता है।
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‘घातक प्लाटून’ की खासियत क्या है?
- ये उन लोगों का प्लाटून होता है जो अपनी यूनिट के सबसे तगड़े जवान माने जाते हैं। इन लोगों को जूडो, कराटे किकबॉक्सिंग और मार्शल आर्ट जैसी तकनीक सिखाई जाती हैं।
- ये सैनिक बिना हथियारों के लड़ते हैं।
- हथियारों की भी इनके पास बेहतरीन ट्रेनिंग होती है।
- लोगों के बीच ये गलत धारणा है कि ये सैनिक सिर्फ बिना हथियारों के ही युद्ध में हिस्सा लेते हैं। लेकिन सच यह है कि इनके पास दूसरे सैनिकों की तरह हथियारों की भी ट्रेनिंग होती है। निहत्थे लड़ना इनकी एक अतिरिक्त खूबी है।
प्लाटून में चुना जाना जवान के लिए गर्व की बात
- प्लाटून में चुना जाना किसी भी जवान के लिए गर्व की बात होती है, क्योंकि वे अपने यूनिट के सबसे तगड़े जवान माने जाते हैं। बिना हथियारों के लड़ने की काबिलियत के अलावा, उन्हें शूटिंग करने की, पानी, कचरे और दलदल जैसी मुश्किल जगहों पर जाने की ट्रेनिंग भी दी जाती है।
- वहीं, ‘घातक प्लाटून (ghatak commando)’ में चुनाव के लिए उपलब्ध होने का फैसला खुद सैनिक का होता है। इन सभी लोगों में जो सबसे अच्छे सैनिक होते हैं, उन्हें प्लाटून में जगह दी जाती है।
- इसके अलावा ये सैनिक कई दूसरी तरह की कठिन ट्रेनिंग से भी गुजरते हैं। यूनिट के सैनिकों को नक्शा समझने, कम राशन और दुर्गम जगहों पर रहने के लिए जीवन रक्षा प्रशिक्षण भी दिया जाता है।
घातक प्लाटून (ghatak commando) का इतिहास
- चीन के साथ 1962 के युद्ध के बाद हर इंफेंट्री में एक प्लाटून नियुक्त किया गया था, जिसका नाम कमांडो प्लाटून होता था। एक प्लाटून में करीब 30 व्यक्ति होते हैं। उन्होंने बताया कि यूनिट के सबसे तगड़े युवा ऑफिसर को कमांडर चुना जाता था।
- उस दौर में कमांडो प्लाटून का काम यही होता था कि किसी ऐसी परिस्थिति में जब गुत्थमगुत्था होना पड़े या दुश्मन के पीछे जाना पड़े या कहीं घात लगाना पड़े, तो इनकी भूमिका बेहद महत्वपूर्ण थी।
- इसी वजह से ‘कमांडो प्लाटून’ का नाम बदल कर ‘घातक प्लाटून’ कर दिया गया और इनके कमांडरों को अधिक काबिल बनाने के लिए कई तरह की नई ट्रेनिंग दी जाने लगीं।
घातक कमांडो (ghatak commando) कैसे बनें?
- कमांडो, रक्षा बलों की स्पेशल फोर्सेस होते हैं जिसके लिए डायरेक्ट इंट्री आमतौर पर नहीं होती है।
- घातक कमांडो (ghatak commando) इंडियन आर्मी की प्रतिष्ठित फोर्स मानी जाती है। यदि आप आर्मी में घातक कमांडो का हिस्सा बनना चाहते हैं तो पहले आपको आर्मी में सोल्जर या ऑफिसर के रूप में नियुक्ति पानी होगी।
- इंडियन आर्मी समय-समय पर घातक कमांडो (ghatak commando) की भर्ती के लिए नोटिफिकेशन जारी करती रहती है।
- कोई भी वर्किंग सोल्जर या ऑफिसर घातक कमांडो (ghatak commando) बनने के लिए स्पेशल फोर्सेस रेजीमेंट्स में छह महीने की ट्रेनिंग के लिए अप्लाई कर सकता है।